यह बहुत सुखद है कि भारत अपने देश के कृषि और डेयरी बाजार को अमेरिका के लिए नहीं खोला। अगर ऐसा होता तो भारत के कृषि और डेयरी क्षेत्र को नुक़सान उठाना पड़ता जो इन क्षेत्रों पर निर्भर भारतीय आबादी के जीवन स्तर को अस्त व्यस्त कर देता। दूसरी बात यह है कि भारत ने अमेरिकी मध्यस्थता की बात को सिरे से खारिज कर दिया। ऐसी स्थिति में भारत पर लगने वाले टैरिफ और शुल्क के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर कुछ असर तो होगा हीं।
इसकी भरपाई के लिए हमें देश की अर्थव्यवस्था को आंतरिक रुप से मजबूत बनाना होगा। अमेरिका को छोड़कर अन्य देशों के साथ व्यापार का विकल्प ढूंढना होगा।कृषि और डेयरी क्षेत्र के साथ अन्य सभी क्षेत्रों को इतना संगठित और सशक्त बनाना होगा जिसके कारण भारतीय उत्पाद विश्व में अपनी जगह बनाए।
ऐसे समय में हम सहकारिता के माध्यम से असंगठित क्षेत्र में लगे कार्यबल को संगठित और अधिक उत्पादक बना सकते हैं।” राष्ट्रीय सहकारिता नीति 2025″ में सरकार ने अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में सहकारी समितियों के माध्यम से आर्थिक स्वावलंबन, सामाजिक और सांस्कृतिक एकजुटता लाने का प्रयास किया है।कृषि क्षेत्र एवं कृषि से जुड़े क्षेत्रों में सहकारी समितियों के माध्यम से आर्थिक स्वावलंबन की असीमित संभावनाएं है। जैस दुग्ध उत्पादन, मछली पालन, मुर्गी पालन, जैविक खेती, जैविक उर्वरक और कीटनियंत्रक आदि के उत्पादन, कपड़ा निर्माण में अभी भी बुनकर समितियां कार्यरत है, सेवा क्षेत्र के साथ फल एवं सब्जी उत्पादन एवं विपणन से संबंधित क्षेत्र, प्रधानमंत्री जन औषधि केन्द्र, भंडारण, सामान्य सेवा केन्द्र, उचित मूल्य की दुकान, एलपीजी वितरक, ग्रामीण पाइप जलापूर्ति योजना का रखरखाव और संचालन सूक्ष्म बीमा, नवीकरणीय ऊर्जा,जल वितरण, स्वास्थ्य, शिक्षा, अपशिष्ट प्रबंधन, परिवहन, बायोगैस उत्पादन आदि में सहकारी समितियों को बढ़ावा देने पर बल दिया गया है। इनके माध्यम से हम सामुहिक भागीदारी,समान लाभ, लोकतान्त्रिक व्यवस्था को कायम रखते हुए सामाजिक और सांस्कृतिक एकजुटता के साथ समावेशी विकास कर सकते हैं जिससे देश की अर्थव्यवस्था दीर्घकालिक और सुव्यवस्थित रूप से सबल होगी। इसके लिए इस नीति में सरकार ने सहकारी समितियों को मजबूत करने के लिए आवश्यक सभी उपायों को करने पर बल दिया है।
सरकार ने इस नीति को “किसानों, महिलाओं और ग्रामीण विकास” को ध्यान में रखकर बनाया है। इसमें महिलाओं और कमजोर वर्गों की भागीदारी हो, ऐसा सुनिश्चित किया गया है। अलग अलग क्षेत्रों के विशिष्ट ग्रामीण उपज जैसे शहद, मसाले, काफी, चाय औषधीय एवं सुगंधित पौधे, रेशम कीट, फल, मशरूम इत्यादि को सहकारी समितियों के माध्यम से बढ़ावा देने पर बल दिया गया है।
इसके अलावा सहकारिता से संबंधित शिक्षा, प्रशिक्षण पर भी बल दिया गया है।
साथ ही उत्तम कोटि के ब्रांडिंग और विपणन पर भी बल दिया गया है।
इस प्रकार राष्ट्रीय सहकारिता नीति के विजन और रणनीति के अनुसार ईमानदारी पूर्वक, सामुहिक और समावेशी विकास को दृष्टिगत रखते हुए अगर हम काम करेंगे तो इससे हमारी अर्थव्यवस्था क्रियाशील और विकसित होगी और फिर हमें किसी टैरिफ से कोई चिंता नहीं होगी।
शशिबाला रावल
प्रदेश महामंत्री
सहकार भारती
बिहार
https://www.facebook.com/share/p/1W6z7Z6GsQ/