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मछली पालन के लिए तालाब का पानी को कैसे अच्छा रखा जाता है जिस्म की अच्छी तरह से ऑक्सीजन रहे और मछली पालन में मछलियों को सुविधा रहे ?
मछली पालन में तालाब के पानी की गुणवत्ता और उसमें ऑक्सीजन का स्तर बनाए रखना मछलियों की सेहत और उत्पादन के लिए बहुत जरूरी है। इसे “जल प्रबंधन” और “पानी की गुणवत्ता नियंत्रण” कहा जाता है। मैं इसे विस्तार से समझाता हूँ:
1.  तालाब का चयन और तैयारी
= तालाब की गहराईः मछली पालन के लिए आदर्श गहराई 1.5 – 2.5 मीटर होती है।
= तालाब की सफाईः तालाब में किसी तरह का कचरा, घास, कीचड़ या पुराने पत्ते न हों।
= कीटनाशक या रसायनः तालाब में कोई हानिकारक रसायन नहीं होना चाहिए।
2.  पानी की गुणवत्ता बनाए रखना
= ऑक्सीजन स्तर (Dissolved Oxygen – DO)
= मछली के लिए DO 5-7 mg/L होना चाहिए।
= ऑक्सीजन बढ़ाने के उपायः
= एयरेशन मशीन (paddle wheel aerator) का इस्तेमाल ।
= तालाब में फव्वारे या छोटे झरने लगाना।
= पौधे जैसे जलकुंभी बहुत ज्यादा न हों, क्योंकि दिन में ऑक्सीजन छोड़ते हैं लेकिन रात में खपत बढ़ाते हैं।
=pH संतुलन
= आदर्श pH: 6.5-8.5
=pH बढ़ने पर (अल्कलाइन)
पानी में नींबू या एसिडिटी कम करने के लिए जिप्सम या ज्वालामुखी राख का उपयोग।
3.  तापमान
= मछली के प्रकार के अनुसार पानी का तापमान 20-30°C होना चाहिए।
= बहुत ज्यादा गर्म या ठंडा पानी मछलियों की सेहत बिगाड़ सकता है।
4.  मिट्टी और कीचड़
= तालाब का तल बहुत ज्यादा कीचड़ न हो।
= हर साल तालाब को साफ और ड्रेन करके मिट्टी की परत हल्की करनी चाहिए।
5.  पानी की नियमित देखभाल
= पानी बदलनाः हर 15-30 दिन में 10-20% पानी बदलना।
= नमक डालना (केवल freshwater तालाब में): 0.1-0.2% नमक डाले जाने से मछलियों में रोग कम होते हैं।
= पौधों और जलीय जीवों का नियंत्रणः अत्यधिक पौधे ऑक्सीजन कम कर सकते हैं।
6.  पोषण और फीडिंग
= मछलियों को सही समय पर और सही मात्रा में खाना दें।
= अधिशेष खाना पानी में जमा न होने दें, इससे पानी में ऑक्सीजन घटती है और अमोनिया बढ़ता है।
7.  रोग और कीट प्रबंधन
= पानी में कीट या रोग पैदा न होने दें।
= तालाब में मछली रोग के लक्षण, जैसे लुप्त होना, सुस्त रहना, त्वचा पर धब्बे दिखना, ध्यान दें।
सारांशः
नियमित एयरेशन, पानी का संतुलन, साफ-सफाई, और सही पोषण से पानी में ऑक्सीजन अच्छी रहती है।

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यह बहुत सुखद है कि भारत अपने देश के कृषि और डेयरी बाजार को अमेरिका के लिए नहीं खोला। अगर ऐसा होता तो भारत के कृषि और डेयरी क्षेत्र को नुक़सान उठाना पड़ता जो इन क्षेत्रों पर निर्भर भारतीय आबादी के जीवन स्तर को अस्त व्यस्त कर देता। दूसरी बात यह है कि भारत ने अमेरिकी मध्यस्थता की बात को सिरे से खारिज कर दिया। ऐसी स्थिति में भारत पर लगने वाले टैरिफ और शुल्क के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर कुछ असर तो होगा हीं।
इसकी भरपाई के लिए हमें देश की अर्थव्यवस्था को आंतरिक रुप से मजबूत बनाना होगा। अमेरिका को छोड़कर अन्य देशों के साथ व्यापार का विकल्प ढूंढना होगा।कृषि और डेयरी क्षेत्र के साथ अन्य सभी क्षेत्रों को इतना संगठित और सशक्त बनाना होगा जिसके कारण भारतीय उत्पाद विश्व में अपनी जगह बनाए।
ऐसे समय में हम सहकारिता के माध्यम से असंगठित क्षेत्र में लगे कार्यबल को संगठित और अधिक उत्पादक बना सकते हैं।” राष्ट्रीय सहकारिता नीति 2025″ में सरकार ने अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में सहकारी समितियों के माध्यम से आर्थिक स्वावलंबन, सामाजिक और सांस्कृतिक एकजुटता लाने का प्रयास किया है।कृषि क्षेत्र एवं कृषि से जुड़े क्षेत्रों में सहकारी समितियों के माध्यम से आर्थिक स्वावलंबन की असीमित संभावनाएं है। जैस दुग्ध उत्पादन, मछली पालन, मुर्गी पालन, जैविक खेती, जैविक उर्वरक और कीटनियंत्रक आदि के उत्पादन, कपड़ा निर्माण में अभी भी बुनकर समितियां कार्यरत है, सेवा क्षेत्र के साथ फल एवं सब्जी उत्पादन एवं विपणन से संबंधित क्षेत्र, प्रधानमंत्री जन औषधि केन्द्र, भंडारण, सामान्य सेवा केन्द्र, उचित मूल्य की दुकान, एलपीजी वितरक, ग्रामीण पाइप जलापूर्ति योजना का रखरखाव और संचालन सूक्ष्म बीमा, नवीकरणीय ऊर्जा,जल वितरण, स्वास्थ्य, शिक्षा, अपशिष्ट प्रबंधन, परिवहन, बायोगैस उत्पादन आदि में सहकारी समितियों को बढ़ावा देने पर बल दिया गया है। इनके माध्यम से हम सामुहिक भागीदारी,समान लाभ, लोकतान्त्रिक व्यवस्था को कायम रखते हुए सामाजिक और सांस्कृतिक एकजुटता के साथ समावेशी विकास कर सकते हैं जिससे देश की अर्थव्यवस्था दीर्घकालिक और सुव्यवस्थित रूप से सबल होगी। इसके लिए इस नीति में सरकार ने सहकारी समितियों को मजबूत करने के लिए आवश्यक सभी उपायों को करने पर बल दिया है।
सरकार ने इस नीति को “किसानों, महिलाओं और ग्रामीण विकास” को ध्यान में रखकर बनाया है। इसमें महिलाओं और कमजोर वर्गों की भागीदारी हो, ऐसा सुनिश्चित किया गया है। अलग अलग क्षेत्रों के विशिष्ट ग्रामीण उपज जैसे शहद, मसाले, काफी, चाय औषधीय एवं सुगंधित पौधे, रेशम कीट, फल, मशरूम इत्यादि को सहकारी समितियों के माध्यम से बढ़ावा देने पर बल दिया गया है।
इसके अलावा सहकारिता से संबंधित शिक्षा, प्रशिक्षण पर भी बल दिया गया है।
साथ ही उत्तम कोटि के ब्रांडिंग और विपणन पर भी बल दिया गया है।
इस प्रकार राष्ट्रीय सहकारिता नीति के विजन और रणनीति के अनुसार ईमानदारी पूर्वक, सामुहिक और समावेशी विकास को दृष्टिगत रखते हुए अगर हम काम करेंगे तो इससे हमारी अर्थव्यवस्था क्रियाशील और विकसित होगी और फिर हमें किसी टैरिफ से कोई चिंता नहीं होगी।
शशिबाला रावल
प्रदेश महामंत्री
सहकार भारती
 बिहार
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“ग्रामश्री किसान स्कूल द्वारा किसानों को वर्मी कम्पोस्ट प्रशिक्षण – जैविक खेती की ओर एक सशक्त कदम!”
जैविक और टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने हेतु ग्रामश्री किसान स्कूल द्वारा किसानों के लिए वर्मी कम्पोस्ट निर्माण पर एक विशेष प्रशिक्षण सत्र आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में किसानों को बताया गया कि किस प्रकार वे घर पर ही केंचुओं की मदद से प्राकृतिक खाद तैयार कर सकते हैं, जो मिट्टी की उर्वरकता को बढ़ाती है और रासायनिक खादों पर निर्भरता को कम करती है।
प्रशिक्षण के मुख्य बिंदु:
वर्मी कम्पोस्ट क्या है और इसके उपयोग के लाभ
सही प्रकार के केंचुओं (Eisenia fetida) का चयन
खाद निर्माण की प्रक्रिया और समय अवधि
गड्ढा या कंटेनर कैसे तैयार करें
तापमान, नमी और रखरखाव की सावधानियाँ
तैयार वर्मी कम्पोस्ट की पहचान और उपयोग विधि
इस पहल का उद्देश्य किसानों को कम लागत में अधिक उत्पादन की दिशा में प्रेरित करना है, जिससे पर्यावरण भी सुरक्षित रहे और भूमि की गुणवत्ता बनी रहे।
“प्राकृतिक खाद अपनाएं, मिट्टी को स्वस्थ बनाएं – ग्रामश्री किसान स्कूल के साथ आत्मनिर्भर किसान की ओर!”
आज ही ग्रामश्री किसान से जुड़ें और जाने कृषि, पशुपालन और मत्स्य पालन से संबंधित जानकारी। सम्पर्क करें – 9153987823, 8709476192.